हर साल राम नवमी के आते ही पूरे भारत में एक अलग ही माहौल बन जाता है। कहीं भक्ति की लहर, कहीं रामायण की छाया, तो कहीं राजनीतिक सुरों की गूंज। वर्ष 2025 की राम नवमी उन सभी भावनाओं का एक जटिल मिश्रण बनकर सामने आई—जहां ईश्वर भक्ति और सामाजिक यथार्थ एक साथ चलते हैं।
राम नवमी: धार्मिक उत्सव का महत्व
राम नवमी केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है—यह भारत के करोड़ों लोगों की भावना, आस्था और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यह दिन हिंदू धर्म में एक अत्यंत पवित्र तिथि मानी जाती है, जिस दिन अयोध्या नगरी में राजा दशरथ के यहाँ भगवान राम का जन्म हुआ था। वह केवल एक पौराणिक पात्र नहीं, बल्कि न्याय, सत्य, कर्तव्य और धर्म के जीवंत प्रतीक माने जाते हैं।
हर वर्ष चैत्र मास की नवमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है, जिसमें मंदिरों में विशेष पूजा, रामायण पाठ, रामलीला नाटक और धार्मिक शोभायात्राएं होती हैं। यह दिन छोटे-बड़े सभी के लिए एक आत्मिक और आनंदमय अनुभव लेकर आता है।
राम नवमी 2025: उत्सव के पीछे की सच्चाई
साल 2025 की राम नवमी मानो उत्सव की आड़ में बहुत कुछ कहने की कोशिश कर रही थी। बाहर था उल्लास, भक्ति और शोभायात्राएं—लेकिन भीतर थी तनाव, राजनीति और अदृश्य विभाजन की परछाई।
यह सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं था; इस वर्ष कई जगहों पर राम नवमी एक राजनीतिक संदेशवाहक बन गई थी। राजनीतिक दलों की भागीदारी, धार्मिक प्रतीकों के साथ पार्टी के चिह्नों का मेल—इन सबने यह सवाल खड़ा कर दिया: क्या यह उत्सव अब केवल धार्मिक ही रह गया है?
विभिन्न राज्यों में राम नवमी का स्वरूप
- अयोध्या: राम जन्मभूमि में भव्य आयोजन, प्रधानमंत्री स्तर के नेताओं की उपस्थिति।
- पश्चिम बंगाल और बिहार: कई स्थानों पर शोभायात्राओं को लेकर पुलिस के साथ झड़पें, इंटरनेट बंद करने जैसे कदम उठाए गए।
- महाराष्ट्र और गुजरात: आयोजन शांतिपूर्ण रहे, लेकिन कुछ जगहों पर राजनीतिक प्रचार और भाषण केंद्र में रहे।
राजनीति बनाम धर्म: एक पतली रेखा या धुंधली सीमाएं?
भारतीय समाज में धर्म और राजनीति हमेशा साथ-साथ चलते आए हैं। लेकिन 2025 की राम नवमी के दौरान यह संबंध काफी असहज होता दिखाई दिया।
राजनीतिक दलों का रुख
एक दल कह रहा है, “राम हमारी पहचान हैं।” वहीं दूसरा दल कह रहा है, “धार्मिक भावनाओं का उपयोग कर वोटबैंक बनाया जा रहा है।” लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है—क्या ये बयान राम की शिक्षा के अनुसार हैं?
प्रशासन की भूमिका और जवाबदेही
जहां तनाव फैला है, वहां पुलिस की भूमिका कभी सराही गई है, कभी सवालों के घेरे में आई है। राज्य सरकारों ने इंटरनेट बंद, पुलिस तैनाती और प्रतिबंधों के माध्यम से स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की, लेकिन कई बार प्रतिक्रिया देर से आई।
सामाजिक विभाजन और भाईचारे का संकट
एक समय था जब त्योहार का मतलब था साथ मिलकर खुशी मनाना। अब कई लोग सवाल उठा रहे हैं—क्या त्योहार अब विभाजन का जरिया बन चुका है?
सामान्य लोगों का दृष्टिकोण
जब मुस्लिम मोहल्ले में हिंदू शोभायात्रा जाती है, तो वे दरवाजे बंद कर लेते हैं। वहीं हिंदू मोहल्ले में अज़ान सुनते ही चेहरे पर उदासी छा जाती है। क्या यही हम चाहते हैं? वह भारत कहाँ गया, जहाँ “सभी धर्म एक धागे में बंधे थे”?
भविष्य के लिए समाधान और दृष्टिकोण
समाधान जटिल नहीं है, लेकिन यह सरल भी नहीं है। इसके लिए तीन चीज़ों की आवश्यकता है: राजनीतिक इच्छाशक्ति, प्रशासनिक क्षमता, और सामान्य लोगों के बीच पारस्परिक सम्मान।
- राजनीतिज्ञों को धर्म का उपयोग नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे सम्मान देना चाहिए।
- प्रशासन को पूर्व तैयारी और संवेदनशीलता के साथ काम करना चाहिए।
- लोगों को एक-दूसरे के त्योहारों का सम्मान करना चाहिए, डर नहीं।
निष्कर्ष: हम कहां जा रहे हैं?
राम नवमी का उत्सव प्रेम, सम्मान और भाईचारे का प्रतीक होना चाहिए। अगर राजनीति, धर्म और समाज एक-दूसरे के दुश्मन बन जाएं, तो सिर्फ इंसानियत ही हार जाएगी। और हम खो देंगे वही राम, जो धर्म और मानवता का समान रूप से उदाहरण थे।
पूछे जाने वाले प्रश्न
राम नवमी क्या है?
राम नवमी भगवान रामचन्द्र की जयंती है, जो हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है।
राम नवमी २०२५ में कब मनाई गई?
२०२५ में राम नवमी १० अप्रैल, गुरुवार को मनाई गई।
इस पर्व में राजनीतिक रंग क्यों आया है?
धार्मिक पर्व में राजनीतिक दलों का प्रचार, धार्मिक प्रतीकों का राजनीतिक उपयोग—इन कारणों से पर्व कई बार राजनीतिक रूप ले लेता है।
सांप्रदायिक सद्भाव के लिए क्या किया जाना चाहिए?
सभी धर्मों का सम्मान, राजनीतिक संयम और प्रशासनिक निष्पक्षता बनाए रखना ही सद्भाव का मार्ग है।